भारत ₹8.34 करोड़ हाइपरलूप परियोजना पर खर्च कर रहा है—एक ऐसी तकनीक जिसे दुनिया भर में सुरक्षा जोखिमों और अव्यावहारिकता के कारण छोड़ दिया गया है। वहीं, हमारी रेलों में भीड़, देरी और हादसे आज भी गंभीर समस्याएँ बनी हुई हैं।
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क्या इन असली दिक्कतों को हल करना, एक अधूरे सपने के पीछे भागने से ज्यादा ज़रूरी नहीं है?