अगर मोहन भागवत सच में महिलाओं को पिछड़ी परंपराओं से मुक्त करना चाहते हैं, तो क्या आर.एस.एस. अब अपनी शाखाओं, निर्णय-निर्माण संस्थाओं और वैचारिक ढांचे में महिलाओं को शामिल करेगा?
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क्या संघ परिवार महिलाओं को सशक्त बनाने की बात कर सकता है, जब वो समान नागरिक संहिता, विवाह और उत्तराधिकार में बराबरी के अधिकारों का विरोध करता है?
If Mohan Bhagwat truly wants to liberate women from regressive traditions, will the RSS now open its shakhas, decision-making bodies, and ideological core to women?