यदि भारतीय युवा "विश्व स्तर पर रोजगार योग्य" बन रहे हैं,
तो उन्हें विदेशों में बुनियादी नौकरियों के लिए पलायन करने पर क्यों मजबूर किया जाता है?
क्या कौशल भारत की वास्तविक सफलता पासपोर्ट में मापी गई है, प्लेसमेंट में नहीं?