अगर 27.5 करोड़ से ज़्यादा भारतीय नियमित रूप से अंग्रेज़ी का इस्तेमाल करते हैं, जो कि अधिकांश देशों की आबादी से भी ज़्यादा है, तो फिर गृहमंत्री को इस ज़ुबान से शर्म क्यों है? भारत की भाषाई प्रतिभा पर गर्व क्यों नहीं?
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क्या "एक देश, एक संस्कृति" को कई आवाज़ों से डर लगता है?